मुद्दा गरम है, सेना में भर्ती के महज 4 वर्षों के बाद ही आपको सेवानिवृत्त कर दिया जाएगा। इस बात को लेकर लोगों में नाराज़गी देखी जा सकती है। लेकिन इस नाराज़गी की मूल वजह क्या है? सरकारी नौकरी को हमेशा इस तरह से देखा जाता है कि इसको एक बार हासिल करने के बाद आप अपना जीवन असमय नौकरी जाने के डर के बिना गुजार सकते हैं। पर अब यह भी वैसा नहीं रहा। जबकि सरकार यह बोल रही है कि 4 साल की अवधि में ही उन्हें 20 लाख जैसी बड़ी रकम दे दी जाएगी लेकिन फिर भी लोग सरकार के इस फैसले के विरुद्ध हैं।
हम जब भी परिवार की सुरक्षा की बात करते हैं तो हम वृद्धों, महिलाओं और बच्चों की बात करते हैं। हमेशा से ऐसा माना गया है कि पुरुष तो कैसे भी कमा कर रह सकता है लेकिन स्त्रियों को आर्थिक तौर पर सुरक्षा प्रदान करना बहुत जरूरी है जो कि उनको अपने पिता या पति के द्वारा ही प्राप्त हो सकती है। आज के समय में यह भ्रांति टूटी तो है लेकिन कुछ हद तक ही।
गुज़रते समय के साथ हम चीजों को वैसे ही स्वीकार कर लेते हैं जैसे कि वह चलती आ रही है। स्वाधीनता की लड़ाई के समय मूलभूत अधिकारों की मांग भारतीयों के लिए की जा रही थी। अधिकारों का हनन तो हमेशा से होता रहा है, लेकिन जितना स्त्रियों के अधिकारों का हनन हुआ उतना शायद ही किसी और का हुआ हो । बचपन में लड़कियों को घर में लड़कों जितना पौष्टिक आहार नहीं मिलता। कई घरों में लड़के अच्छे स्कूल में पढ़ रहे होते हैं लेकिन लड़कियों को सामान्य स्कूल में पढ़ाया जाता है। लड़कियों की उच्च शिक्षा के लिए कम ही माता-पिता सोचते हैं। लेकिन जब बात लड़कों की होती है तो गरीब से गरीब परिवार भी चाहते हैं कि उनका बेटा उच्च शिक्षा प्राप्त करे।
स्कूलों में बच्चों को रटवा तो दिया जात है कि हमारे मूलभूत अधिकार कितने और क्या होते हैं, लेकिन वो सब बस किताबी ज्ञान तक ही सीमित रह जाता है। घर से निकल कर बाहर की दुनिया से जब स्त्रियों का परिचय होता है तब उन्हें लगता है कि यह कहानी सिर्फ घर तक सीमित नहीं थी।
कार्यस्थल पर भी स्त्रियों को पुरुषों की अपेक्षा समान काम के लिए कम वेतन दिया जाता है। कार्यस्थल परिस्थितियों से छेड़खानी कोई नई बात नहीं। कई बार स्थिति ऐसी बन जाती है कि स्त्रियों को खुद को सही साबित करना भी मुश्किल हो जाता है। गर्भावस्था के दौरान दी जाने वाली छुट्टियों का मिलना भी इतना मुश्किल कर दिया जाता है कि स्त्रियों को अपनी नौकरी तक छोड़ देनी पडती है। कई सेक्टर्स मे सिर्फ लड़कों को ही नौकरी मिलती है। अगर शादी के बात की जाए तो लड़का लड़की अगर समान पद पर कार्य कर रहे हैं तो भी लड़की के माता-पिता को लड़के के माता-पिता को दहेज देना होता है। शादी के बाद घर संभालने की जिम्मेदारी सिर्फ लड़कियों पर क्यों होती है?
सरकार कोशिश कर रही है कि स्त्रियों को भी समानता का अधिकार मिले, उन्हें भी उच्च शिक्षा प्राप्त हो जिसके लिए सरकार ने कई बड़े स्कूलों में लड़कियों की शिक्षा को मुफ्त कर दिया है। सरकार कई ऐसी योजनाएं चला रही है जिससे कि लड़कियों का समुचित विकास हो सके। कई ऐसे कानून बने जो लड़कियों को उनके हक की लड़ाई लड़ने में मदद करते हैं।
बावजूद बाधाओं के ऐसी कई स्त्रियां हैं जिन्होंने सफलता के आकाश पर अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा है।लता मंगेशकर, कल्पना चावला, शहनाज हुसैन, दीपिका कुमारी, मैरी कॉम, इंदिरा नुई , पेट्रिशिया नारायण, कल्पना सरोज, पंखुड़ी श्रीवास्तव आदि कई ऐसे नाम है जिन्होंने कभी भी मुश्किलों को अपनी सफलता में बाधा नहीं बनने दिया। यूट्यूब पर भी ऐसी कितनी ही स्त्रियां है जो अपनी जीवनगथा से दूसरों के लिए प्रेरणाश्रोत हैं।
आज कई ऐसी संस्थाएं भी है जो स्त्रियों के उत्थान के लिए कार्य करती हैं । जीवन इसी का नाम है,जो आगे बढ़ चुका है उसको पीछे रह गया लोगों का हौंसला बढ़ाना है और उन्हें रोशनी दिखानी है। आज हमें और ऐसे लोगों की जरूरत है जो लोगों को अपने भीतर की क्षमता को पहचानने में उनकी मदद कर सके ।
लेकिन समाज में समानता का स्थान प्राप्त करना स्त्रियों के लिए अभी भी सपने जैसा है। पिछले दिनों हमारी यही कोशिश है की ऐसी स्त्रियों को जानने का मौका मिला जिन्हे जानकर लगा कि अगर सही अवसर प्राप्त होता, तो यह समाज में बहुत आगे जा सकती थी। जब लड़कों को व्यवसाय शुरू करना होता है तो उनकी मदद को बहुत सारे लोग आगे आ जाते हैं।लेकिन जब स्त्रियों की बारी आती है तो ना तो उनके पास व्यवसाय का समुचित ज्ञान होता है और ना पूरी जानकारी होती है। अनुमान से कोई कितना दूर जा चल सकता है | हमारी यहकी कोशिश है की वो ऐसी स्त्रियों को एक ऐसा मंच प्रदान करें जो उन्हें उनके सपनो की उड़ान को पूरा करने मे उनकी मदद कर सके|
Absolutely correct